- 23 August, 2025
पोप ने याद दिलाया कि इस वर्ष 1925 के यूनिवर्सल क्रिश्चियन कॉन्फ्रेंस ऑन लाइफ एंड वर्क के 100 वर्ष और पहली इक्कुमेनिकल काउंसिल ऑफ नाइसिया (सन् 325) की 1700वीं जयंती भी मनाई जा रही है। नाइसिया की सभा ने येसु मसीह की दिव्यता को स्वीकार किया और ऐसा विश्वास-पत्र तैयार किया जिसने आज तक ईसाइयों को जोड़े रखा है।
उन्होंने महाधर्माध्यक्ष नाथन सॉडरब्लॉम के कार्य की भी सराहना की, जिन्होंने 1925 में स्टॉकहोम में पहला विश्वव्यापी (इक्कुमेनिकल) सम्मेलन बुलाया था। पोप ने कहा कि अब कैथोलिक कलीसिया अन्य ईसाई संप्रदायों के साथ मसीह के शिष्य के रूप में खड़ी है, और यह मानती है कि जो हम सबको जोड़ता है वह हमारी भिन्नताओं से कहीं बड़ा है।
पोप लियो ने कहा कि दूसरे वेटिकन काउंसिल के बाद से कैथोलिक कलीसिया ने इक्कुमेनिज़्म को पूरी तरह अपनाया है, जिसे यूनिटाटिस रेडिन्टेग्रातियो नामक डिक्री से दिशा मिली। इस डिक्री में साझा बपतिस्मा और मिशन पर आधारित “विनम्र और प्रेमपूर्ण भाईचारे” में संवाद पर ज़ोर दिया गया है।
उन्होंने लिखा – “जिस एकता की मसीह अपनी कलीसिया से इच्छा रखते हैं, वह दिखाई देनी चाहिए। यह एकता धर्मशास्त्रीय संवाद, जहाँ संभव हो वहाँ साझा आराधना, और मानव पीड़ा के सामने मिलकर गवाही देने से बढ़ती है।”
इस वर्ष के विश्वव्यापी सप्ताह (इक्कुमेनिकल वीक) का विषय है – “ईश्वर की शांति का समय”। पोप ने कहा कि शांति ईश्वर का वचन भी है और ईसाइयों का कार्य भी। हमें विभाजन के सामने साहस से खड़ा होना है, उदासीनता के सामने करुणा दिखानी है और जहाँ घाव हैं वहाँ चंगाई लानी है।
पोप ने अपने संदेश का समापन यह कहते हुए किया कि कैथोलिक कलीसिया लगातार अन्य ईसाई समुदायों के साथ मिलकर प्रार्थना और कार्य करती रहेगी ताकि मेल-मिलाप और एकता को आगे बढ़ाया जा सके।
✍️ स्रोत: वेटिकन न्यूज़
📸 चित्र स्रोत: नेशनल कैथोलिक रजिस्टर
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