- 11 September, 2025
7 सितम्बर 2025 को कलीसिया पियर जॉर्जियो फ्रासाती को संत घोषित करेगी। यह वह युवक थे जिनकी छोटी-सी जीवन यात्रा आनंद, न्याय और गहरी यूखरिस्तीय भक्ति से परिपूर्ण थी। 1901 में इटली के ट्यूरिन में जन्मे फ्रासाती ने ऐश्वर्य के बजाय करुणा, प्रतिष्ठा के बजाय दरिद्रता और स्वार्थ के बजाय सेवा को चुना। उनका आदर्श वाक्य “Verso l’Alto” (“ऊँचाई की ओर”) न केवल उनके पर्वतारोहण प्रेम को दर्शाता है, बल्कि पवित्रता की आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर उनकी आकांक्षा का भी प्रतीक है। आज के समय में, जब विश्वास और कर्म अक्सर अलग-अलग दिखते हैं, फ्रासाती का जीवन इन दोनों का साहसी और सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है।
विरोधाभासों और करुणा से भरा बचपन
फ्रासाती एक ऐसे परिवार में पले-बढ़े जहाँ पिता नास्तिक और माँ धार्मिक थीं। बचपन से ही उन्होंने पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई। एक बार उन्होंने अपने जूते एक गरीब बच्चे को दे दिए जो उनके घर मदद माँगने आया था। बहन लूसियाना के साथ गहरा संबंध और कला व साहित्य का संग-साथ उन्हें विचारशील और सक्रिय दृष्टिकोण प्रदान करता रहा।
शिक्षा और विश्वास की जागृति
शैक्षणिक संघर्षों के कारण उन्होंने एक जेसुइट स्कूल में प्रवेश लिया, जहाँ उनका विश्वास गहराया। वे प्रतिदिन यूखरिस्त में भाग लेने लगे और संत विंसेंट डी पॉल सोसाइटी से जुड़कर गरीबों की सेवा का संकल्प लिया। ट्यूरिन के पॉलिटेक्निक संस्थान में इंजीनियर बनने हेतु दाखिला लिया ताकि “मजदूरों के बीच मसीह की सेवा कर सकें।” उनके लिए अध्ययन और आध्यात्मिकता अलग नहीं थे, बल्कि बौद्धिक विकास और दैनिक जिम्मेदारी एक-दूसरे के पूरक थे।
प्रेरणादायक उत्साह और सामाजिक भागीदारी
फ्रासाती का सामान्य जीवन साहस और जीवंतता से भरा था। कैथोलिक एक्शन, सेंट डॉमिनिक के तृतीय आदेश और अन्य आंदोलनों के सदस्य के रूप में उन्होंने ट्यूरिन की झुग्गियों में भोजन, दवा और आशा पहुँचाई। अपनी जेबखर्च से उन्होंने एक बेघर महिला का किराया चुकाया और फासीवाद व बढ़ते व्यक्तिवाद का विरोध किया। उनका सामाजिक समर्पण मत्ती 25:40 पर आधारित था: “जो तुम मेरे इन छोटे भाइयों में से किसी के लिए करते हो, वह तुम मेरे लिए करते हो।”
आध्यात्मिक गहराई और यूखरिस्तीय भक्ति
यूखरिस्त उनके जीवन का केंद्र था। वे प्रतिदिन मिस्सा में भाग लेते, आराधना करते, रोज़री प्रार्थना करते और नियमित रूप से अंगीकार करते थे। वे कहा करते थे: “हर सुबह यीशु पवित्र मिस्सा में मेरे पास आते हैं, और मैं उन्हें अपनी छोटी-सी सेवा द्वारा लौटाता हूँ।” उनकी आध्यात्मिक अनुशासन ही उनके प्रेरणादायक उत्साह का स्रोत था।
धन्य जीवन और कलीसियाई शिक्षाएँ
1990 में धन्य घोषित करते समय संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें “धन्यवचनों का व्यक्ति” कहा। वास्तव में, उन्होंने मत्ती 5 के वचनों को अपने जीवन में साकार किया—धन्य हैं वे जो आत्मा से दरिद्र हैं, धन्य हैं वे जो दयालु हैं, और धन्य हैं वे जो न्याय की भूख-प्यास रखते हैं। उनका जीवन Lumen Gentium और Gaudium et Spes की उस पुकार को प्रतिध्वनित करता है जो सामान्य विश्वासियों को समय के संकेतों को पहचानकर सुसमाचार-आधारित उत्तर देने के लिए प्रेरित करती है।
अंतिम साक्ष्य और स्थायी विरासत
1925 में, गरीबों के बीच सेवा करते हुए फ्रासाती को पोलियो हो गया। मृत्युशैया पर भी वे उन्हीं लोगों के लिए चिंतित रहे जिन्हें अभी मदद की आवश्यकता थी। मात्र 24 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनका जीवन पवित्रता और सेवा का जीवंत प्रमाण बन गया। संत पापा पायस XI, जो उन्हें संत घोषित करेंगे, ने कहा था: “जैसे कोई चैंपियन बनकर पैदा नहीं होता, वैसे ही कोई संत भी बनकर पैदा नहीं होता।”
उनकी संत घोषणा यह प्रमाण है कि पवित्रता केवल मठों में ही नहीं, बल्कि कक्षाओं, गलियों और समाज में भी जी जा सकती है। उनका जीवन आज भी युवाओं, आह्वानों और सामाजिक आंदोलनों को प्रेरित करता है।
अंतिम संदेश: पवित्रता की ऊँचाइयों की ओर
पियर जॉर्जियो फ्रासाती का जीवन हमें याद दिलाता है कि साधारण जीवन में भी पवित्रता संभव है। उनका आनंद, सामाजिक सक्रियता और यूखरिस्तीय भक्ति हमें चुनौती देती है कि हम धन्यवचनों को केवल आदर्श न मानें, बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में उतारें। उनकी संत घोषणा हमें आमंत्रित करती है—Verso l’Alto—प्रेम, सेवा और पवित्रता की ऊँचाइयों की ओर बढ़ने के लिए।
चिंतन हेतु प्रश्न:
– फादर वैलेरियन लोबो,
जमशेदपुर डायसिस
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