- 11 September, 2025
September 8, 2025:
आज की डिजिटल और व्यस्त दुनिया में, वर्ष 2025 में धन्य कार्लो अकुटिस का संत घोषित होना हमें यह दिखाता है कि पवित्रता केवल साधुओं या अतीत की बात नहीं है, बल्कि आम जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए भी सम्भव है। किशोर कार्लो, जो जीन्स और स्नीकर्स पहनकर घूमता था, ने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि ईश्वर से प्रेम, तकनीकी प्रतिभा और दया–करुणा का संगम हमें पवित्र बना सकता है। उनकी कहानी युवाओं और तीर्थयात्रियों को यह चुनौती देती है कि हम अपने दैनिक जीवन में विश्वास को नए रूप से खोजें।
1. जन्म और प्रारम्भिक जीवन
कार्लो का जन्म 1991 में लंदन में हुआ और उनका पालन-पोषण इटली के मिलान में हुआ। बचपन से ही उनमें प्रार्थना और ईश्वर के प्रति गहरा आकर्षण था। मात्र चार साल की उम्र में उन्होंने चर्च में जाने की इच्छा जताई और सात साल में पहला परम प्रसाद प्राप्त किया। इसके बाद वे प्रतिदिन मिस्सा में भाग लेने लगे और रोज़री की प्रार्थना करने लगे। उन्होंने न केवल अपने परिवार को विश्वास की ओर खींचा, बल्कि अपने साथियों को भी सहयोग और प्रेरणा दी।
2. तकनीकी प्रतिभा और डिजिटल प्रचार
कार्लो ने स्वयं कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखी और "यूखरिस्त के चमत्कारों" पर एक वेबसाइट बनाई। वे कहते थे—“यूखरिस्त ही स्वर्ग का राजमार्ग है।” उनकी प्रतिभा ने उन्हें स्थानीय स्तर से उठाकर विश्वभर में ईश्वर की सुंदरता और सत्य को साझा करने का साधन बनाया। संत पापा फ्रांसिस ने उन्हें "डिजिटल युग में पवित्रता का आदर्श" कहा।
3. रोज़मर्रा में पवित्रता
कार्लो को फुटबॉल खेलना, वीडियो गेम खेलना और दोस्तों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। लेकिन उन्होंने कभी विश्वास से समझौता नहीं किया। उनकी दोस्ती सच्चाई और ईमानदारी पर आधारित थी। वे युवाओं के लिए जीवंत उदाहरण थे कि कम उम्र में भी विश्वासपूर्ण जीवन जिया जा सकता है।
4. यूखरिस्त और मरियम भक्ति
उनकी आध्यात्मिकता का मूल था—दैनिक मिस्सा, यूखरिस्त की आराधना और रोज़री। वे कहते थे—“मेरे दिन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण यूखरिस्त है।” वे अपने दोस्तों को भी मिस्सा और रोज़री में भाग लेने का आमंत्रण देते थे।
5. सेवा और करुणा
कार्लो ज़रूरतमंदों के लिए भोजन, कपड़े और सहायता लेकर आगे आते थे। उन्होंने कई बच्चों और गरीबों की मदद की। मत्ती 25:40 को जीते हुए उन्होंने दिखाया—“जो तुमने इन सबसे छोटे के लिए किया, वह मेरे लिए किया।”
6. बीमारी और मृत्यु
15 साल की उम्र में कार्लो को ल्यूकेमिया हो गया। उन्होंने अपना दुख पोप और कलीसिया के लिए अर्पित किया। 2006 में उनका शांतिपूर्ण निधन हुआ। जाते-जाते उन्होंने कहा—“मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा काम नहीं किया, जो ईश्वर को पसंद न हो।” बीमारी में भी वे धन्यवाद और विश्वास से भरे रहे।
7. अक्षुण्ण शरीर और आस्था
मृत्यु के बाद उनका शरीर अक्षुण्ण पाया गया, जिससे अस्सीसी में उनकी कब्र तीर्थयात्रियों का केंद्र बन गई। उनकी कब्र पर लिखा है—“जो ईश्वर के साथ है, वह कभी नहीं मरता।”
8. परिवार और मित्रों का परिवर्तन
कार्लो की गहरी आस्था ने उनकी मां को, जो पहले विश्वास से दूर थीं, पुनः कलीसिया की ओर खींचा। उनके मित्र भी प्रार्थना और सेवा में सक्रिय हुए।
9. आज के समय में प्रासंगिकता
कार्लो की गवाही यह दिखाती है कि पवित्रता आज भी सम्भव है। उन्होंने कहा था—“सभी लोग मौलिक रूप से जन्म लेते हैं, लेकिन कई नक़ल करते-करते मर जाते हैं।” वे युवाओं को मौलिक जीवन जीने और ईश्वर की खोज करने के लिए प्रेरित करते हैं।
10. युवाओं के लिए आदर्श
जुबली वर्ष 2025 में कार्लो युवाओं के लिए मार्गदर्शक संत हैं। संत पापा फ्रांसिस कहते हैं—“युवा परिवर्तन के योग्य हैं।” कार्लो ने इस चुनौती को स्वीकार किया और दिखाया कि परंपरा और आधुनिकता मिलकर पवित्र जीवन का मार्ग खोल सकती हैं।
विचार हेतु प्रश्न
1. क्या मैं भी कार्लो की तरह यूखरिस्त और प्रार्थना से अपने दैनिक जीवन को समृद्ध बना सकता हूँ?
2. क्या मैं तकनीक का उपयोग अच्छाई और विश्वास बाँटने के लिए कर सकता हूँ?
3. क्या मैं दूसरों की नकल कर रहा हूँ, या मसीह में अपनी मौलिक पहचान खोज रहा
हूँ?
लेखक: फादर वैलेरियन लोबो,
जामशेदपुर डायोसिस
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