- 03 July, 2025
3 जुलाई
आज हम प्रेरित,संत थॉमस के पर्व को हर्ष और श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। वह वही थोमस हैं जिन्हें हम अक्सर "संदेह करने वाला थॉमस" कहते हैं। पर क्या हम जानते हैं कि इसी संदेह के कारण उन्होंने वह सबसे गहरी घोषणा की — " मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!" (योहन 20:28)
संत थॉमस केवल एक संदेह करने वाले शिष्य नहीं थे, वे एक सच्चे खोजकर्ता थे। वे बिना देखे मानने वालों में नहीं थे, बल्कि वे देखने और अनुभव करने के बाद गहराई से विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। प्रभु ने उनके संदेह को नकारा नहीं, बल्कि उनके प्रश्नों का उत्तर दिया, और फिर उन्हें भेजा — संसार के कोने-कोने में सुसमाचार फैलाने।
यही थॉमस, प्रभु येसु के पुनरुत्थान का साक्ष्य लेकर हमारे भारत देश में आए। उन्होंने केरल के समुद्रतट पर कदम रखा, यहाँ की धरती पर प्रभु का नाम बोया, और अपने रक्त से इस भूमि को सिंचित किया। उन्होंने न केवल प्रचार किया, बल्कि अपने जीवन की आहुति दी — उन्हें मद्रास (चेन्नई) के पास शहादत को प्राप्त हुए।
यह हमें सिखाता है कि विश्वास केवल भावनाओं या शब्दों की बात नहीं है — यह एक यात्रा है, जो प्रश्नों से शुरू होती है, उत्तर की खोज करती है, और फिर सेवा व बलिदान में समर्पित हो जाती है।
आइए आज इन तीन बातों को अपने जीवन में अपनाएँ:
1. संदेह से डरें नहीं, बल्कि उसे प्रभु के पास लेकर जाएं।
2. जैसे संत थॉमस ने भारत में सुसमाचार फैलाया, वैसे ही हम भी अपने जीवन से प्रभु का साक्ष्य दें।
3. विश्वास को केवल मन में न रखें, बल्कि उसे अपने कार्यों से दिखाएं।
प्रार्थना: संत थॉमस की मध्यस्थता से
हे स्वर्गिक पिता,
हम तुझे धन्यवाद देते हैं कि तूने प्रेरित, संत थॉमस को हमारे देश भारत में भेजा। उनके विश्वास, समर्पण और बलिदान से हमारा देश धन्य हुआ।आज, उनके पर्व पर, हम प्रार्थना करते हैं कि उनकी मध्यस्थता से,हमारे संदेह विश्वास में बदलें,हमारा जीवन साक्ष्य बने, और भारतवर्ष में तेरा राज्य फैले। हे संत थॉमस हमारे लिए प्रार्थना कीजिए। आमेन।
- कैथोलिक कनेक्ट संवादाता
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