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संत मोनिका दिवस : आँसुओं में छुपा विश्वास, प्रार्थना में खिला आशा का फूल

लखनऊ, 3 सितम्बर 2025:

"प्रभु के सामने बहाए गए आँसू कभी व्यर्थ नहीं जाते।" – संत ऑगस्टीन


अगस्त का अंतिम रविवार इस वर्ष कुछ और ही रंगों से सजा। संत जॉन मैरी वियानी पैरिश, उत्तरैहिया, लखनऊ उस दिन केवल ईंट-पत्थरों से बना एक चर्च न था, बल्कि विश्वास, प्रेम और प्रार्थना से जीवित एक समुदाय बन गया। अवसर था – संत मोनिका दिवस, जिसे महिला संघ ने अध्यक्षा श्रीमती रोजिता के मार्गदर्शन में आयोजित किया।


सभा का आरंभ श्रीमती सरिता तिर्की के आत्मीय परिचय से हुआ। उनके शब्द मानो दीपक की लौ थे, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम का मार्ग प्रकाशित कर दिया। उन्होंने दिन की महत्ता बताते हुए सबको याद दिलाया कि संत मोनिका केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि हर माँ के धड़कते हुए दिल की गवाही हैं।


फिर आरंभ हुआ गुलाब की पंखुड़ियों से सजा वह क्षण – शोभायात्रा। संत मोनिका की प्रतिमा को आरती गीतों की मधुर धुन के बीच वेदी तक लाया गया। हर कदम, हर स्वर, हर पंखुड़ी मानो यही कह रही थी –

“जहाँ विश्वास चलता है, वहाँ ईश्वर स्वयं साथ चलता है।”


यह केवल एक जुलूस नहीं था, बल्कि हर दिल में उमड़ती प्रार्थना का उत्सव था।


सभा का शिखर क्षण पवित्र मिस्सा बलिदान के रूप में आया। मुख्य अनुष्ठान फा. रोनाल्ड डिसूज़ा ने संपन्न किया, साथ ही फा. विन्सेंट डिसूज़ा (पैरिश पुरोहित) और फा. प्रिमस एक्का सह-याजक बने।


मिस्सा के दौरान, जब श्री क्रिस्टोफर टोपनो (पैरिश वाइस-प्रेसिडेंट) के नेतृत्व में कोयर की स्वर-लहरियाँ गूँजीं, तो लगा मानो हर हृदय स्वर्ग की धुन में मिल गया हो। यह संगीत केवल कानों में नहीं, आत्माओं में भी उतरा और सबको प्रभु के और निकट ले गया।


सभा के बीच संत मोनिका के जीवन पर चिंतन हुआ। उनका जीवन आज भी हमें गहरा संदेश देता है –


  • उन्होंने अपने पुत्र संत ऑगस्टीन के लिए 17 वर्षों तक आँसुओं में डूबी प्रार्थना की।
  • जहाँ दुनिया हार मान चुकी थी, वहाँ उनका विश्वास जीवित रहा।
  • अंततः उनकी प्रार्थनाएँ ही वह पुल बनीं, जिसने ऑगस्टीन को संसार के बंधनों से निकालकर प्रभु की सेवा में खड़ा कर दिया।
  • उनका जीवन इस शास्त्र पद को प्रत्यक्ष करता है –“आशा में आनन्दित रहो, क्लेश में धैर्यवान रहो, प्रार्थना में नित्य लगे रहो।” (रोमियों 12:12)


"माँ की प्रार्थना, धरती का वह अदृश्य कवच है जो परिवार को सुरक्षित रखता है।”

“आज की दुनिया में, संत मोनिका हमें याद दिलाती हैं कि धैर्य और विश्वास से ही परिवार का उद्धार संभव है।”


मिस्सा के बाद सभा उत्सव में बदल गई। सभी ने मिलकर संत मोनिका के जीवन का उत्सव मनाया। भोजन ने केवल भूख ही नहीं मिटाई, बल्कि भाईचारे और प्रेम की मिठास भी बाँट दी।


उस क्षण ऐसा लगा मानो संत मोनिका स्वयं वहाँ उपस्थित हों और हर माँ को यह कह रही हों –

“हार मत मानो, तुम्हारी प्रार्थना तुम्हारे परिवार की सबसे बड़ी ताक़त है।”


आज जब परिवार आधुनिकता और चुनौतियों की आँधियों से गुजर रहे हैं, संत मोनिका हमें यह सिखाती हैं –


  • कि आँसुओं से निकली प्रार्थना पर्वतों को भी हिला सकती है।
  • कि युवाओं के भटके हुए कदम भी माँ की प्रार्थना से लौट सकते हैं।
  • कि हर परिवार की दीवारें तभी मजबूत रहेंगी जब उसकी नींव प्रार्थना और विश्वास पर टिकी हो।
  • “जो परिवार साथ में प्रार्थना करता है, वह साथ में बना रहता है।”


यह संत मोनिका दिवस केवल एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि हर हृदय में जगी एक लौ है – जो हमें याद दिलाती है कि विश्वास कभी हारता नहीं, प्रार्थना कभी खाली नहीं जाती, और आँसू कभी व्यर्थ नहीं बहते।


रिपोर्ट तैयार करने वाली

महिला संघ सचिव – श्रीमती बबिता लॉरेंस

(अध्यक्षा – श्रीमती रोजिता, मार्गदर्शन में)

संत जॉन मैरी वियानी पैरिश, उत्तरैहिया, लखनऊ

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