image

माता मरियम का स्वर्ग में उद्‌ग्रहण के पर्व से स्वतंत्रता दिवस तकः नये सवेरे की आशा यात्रा

"उनके स्वर्ग में उद्‌ग्रहण द्वारा हमें वह शाश्वत गंतव्य दिखाया गया है जो मृत्यु के रहस्य के पार हमारा इंतजार करता हैः दिव्य गौरव में पूर्ण आनंद का गंतव्य।" - संत योहन पौलुस द्वितीय

15 अगस्त का दिन दो महत्वपूर्ण उत्सवों का दिन है माता मरियम का स्वर्ग में उद्‌ग्रहण और भारत का स्वतंत्रता दिवस। जब हम जुबली वर्ष 2025 में "आशा के तीर्थयात्री" के रूप में यात्रा कर रहे हैं, यह संयोग हमें आध्यात्मिक उत्थान और सामाजिक मुक्ति के मिलन पर चिंतन करने का अवसर देता है।


1. स्वर्ग में उद्‌ग्रहणः आशा और गंतव्य की प्रतिमूर्तिः संत पिता पायस ,बारहवें द्वारा "सबसे उदार ईश्वर" (Munificentissimus Deus) में परिभाषित स्वर्ग में उद्‌ग्रहण का सिद्धांत बाइबिल के "सूर्य का वस्त्र ओढ़े एक महिला दिखाई पड़ी।" (प्रकाशना ग्रंथ 12:1) और उत्पति 3:15 में वर्णित मरियम की विशेष भूमिका पर आधारित है। मरियम का शरीर और आत्मा सहित स्वर्ग में उद्‌ग्रहण मृत्यु पर विजय और ईश्वर के साथ मिलन की उस नियति को दर्शाता है जिसकी प्रतिज्ञा सभी को दी गई है। संत पिता फ्रांसिस ने मरियम को "स्वर्ग की अंतिम रेखा (finishing line) पार करने वाली पहली" कहकर हमें याद दिलाया कि सच्ची भक्ति "सेवा, विनम्रता और प्रेम" में निहित है। हर "आशा के तीर्थयात्री" के लिए यह आशा का स्रोत है कि हमारी आशा सांसारिक संघर्षों से कहीं ऊपर है।


2. भारत की स्वतंत्रताः सामूहिक तीर्थयात्रा के रूप में: भारत की स्वतंत्रता केवल राजनीतिक मुक्ति नहीं थी, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और "विविधता में एकता" की आदर्श यात्रा थी। जिस प्रकार इस्राएलियों का मिस्र से निकलना एक प्रतिज्ञा की भूमि की तीर्थयात्रा थी, उसी प्रकार भारत का स्वतंत्रता संग्राम भी सभी के लिए गरिमा की दिशा में एक आध्यात्मिक खोज थी। महात्मा गांधी का कथन "स्वतंत्रता किसी भी कीमत पर महंगी नहीं है। यह जीवन की सांस है। जीवित रहने के लिए आदमी क्या कुछ नहीं देगा?" यह दर्शाता है कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक अधिकार नहीं, बल्कि अस्तित्व की मूलभूत आवश्यकता है।


3. जुबली 2025: आशा के तीर्थयात्रीः संत पिता फ्रांसिस ने जुबली वर्ष को "आशा की ज्वाला प्रज्वलित करने" का समय कहा है। वैश्विक अनिश्चितता, युद्ध, प्रवासी शराणार्थी और चिंता के दौर में यह विश्वास को मजबूत बनाने का काल है। "मरियम के साथ, हम आशा के तीर्थयात्री हैं" यह प्रेरिताई के शब्द विश्वासियों को आशा और सुलह की यात्रा में एक साथ चलने के लिए आमंत्रित करता है। तीर्थयात्रा का रूपक आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर ख्रीस्तीय तीर्थयात्रा को राष्ट्रीय स्वतंत्रता की यात्रा से जोड़ता है। दोनों ही यात्राएं मानवीय गरिमा और पूर्णता की खोज में निहित हैं।


4. आशा और स्वतंत्रताः साझा आकांक्षाएं: बाइबिल के अनुसार ख्रीस्तीय आशा मसीह में निहित है वह जो "बंदियों को मुक्ति और शोकितों को सांत्वना" की घोषणा करता है (इसा 61:1-2; लूकस 4:18)। भारत की स्वतंत्रता भी केवल राजनीतिक नहीं थी, बल्कि सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक और आर्थिक मुक्ति की आकांक्षा थी जो ख्रीस्तीय मोक्ष/मुक्ति की संपूर्ण दृष्टि को दर्शाती है। कलीसिया की शिक्षा के अनुसार स्वर्ग में उद्‌ग्रहण "हमारे अपने पुनरुत्थान में विश्वास को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाता है," जो मानवीय गरिमा को रेखांकित करता है।


5. विविधता में एकताः जुबली की आत्माः मरियम की यात्रा "सादगी और विनम्रता में" एकता और सेवा का आदर्श है। भारत का स्वतंत्रता दिवस विविधता से चिह्नित है ध्वजारोहण, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भिन्नता में एकता जो कलीसिया के इस आह्वान से मेल खाता है कि सभी को एक शरीर के रूप में अपनाया जाए। भारत में धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के लिए समान सम्मान के रूप में परिकल्पित की गई थी जो कलीसिया की इस दृष्टि को प्रतिध्वनित करती है कि हर व्यक्ति गरिमा और सम्मान के योग्य एक तीर्थयात्री है।


6. संकटकाल में आशा का पुनरुद्धारः जुबली का आह्वान यह है कि हम "खुले मन, विश्वासपूर्ण हृदय और दूरदर्शी दृष्टि से भविष्य की ओर देखते हुए" एक-दूसरे को आशा पुनः प्राप्त करने में मदद करें। दोनों पर्व -आधुनिक चुनौतियों के बीच युद्ध, विभाजन, महामारी हमें आशा, न्याय और सुलह के दूत बनने की प्रेरणा देते हैं। व्यक्तिगत जिम्मेदारी यह है कि क्या हम मरियम या स्वतंत्रता सेनानियों की तरह लोगों की भलाई के लिए त्याग और सेवा को अपनाने के लिए तैयार हैं?


7. नई भोर की दिशा मेंः मरियम का स्वर्ग में उद्‌ग्रहण हमें "समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर देखने की सामान्य पद्धति से ऊपर" देखने के लिए प्रोत्साहित करता है। सच्ची स्वतंत्रता, आशा की तरह, गतिशील है निरंतर प्रयास, एकजुटता और न्याय, शांति तथा हाशिए पर पड़े लोगों के लिए सहायता प्रदान करने के प्रति प्रतिबद्धता की मांग करती है। जब स्वर्ग में उद्‌ग्रहण और भारत का स्वतंत्रता दिवस जुबली वर्ष 2025 में मिलते हैं, तो "आशा के तीर्थयात्री" हमें यह पहचानने का आह्वान करते हैं कि विश्वास और स्वतंत्रता, आशा और न्याय कैसे आपस में जुड़ी हुई यात्राएं हैं। मरियम को आशा के आदर्श के रूप में देखते हुए और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों से प्रेरणा लेते हुए, हम एक उज्जवल भोर की दिशा में तीर्थयात्री बनकर अपने परिवारों, राष्ट्र और संसार में आशा की किरण बनने के लिए बुलाए गए हैं।


उद्धरण 1: "जैसे मरियम माता का स्वर्गारोहण हुआ, वैसे ही हमारी आत्मा भी पृथ्वी की चुनौतियों से ऊपर उठकर आशा और विश्वास के साथ स्वर्गीय शांति की खोज करे।" प्रकाशना 12:1; काथोलिक धर्म शिक्षा उद्धरण 2: "मरियम का स्वर्ग में उद्‌ग्रहण हमें सिखाता है कि जीवन की कठिनाइयों के बीच भी दिव्य कृपा हमारे साथ है, और अंततः प्रेम और आशा की विजय होती है।" संत पापा पायस XII का सिद्धांत (1950) और लूकस 1:46-55 (मरियम का गीत)


स्वतंत्रता दिवस पर उद्धरण


उद्धरण 1: "स्वतंत्रता केवल शासन से मुक्ति नहीं, बल्कि एकता, न्याय और सभी के लिए समानता के साथ एक नए भारत का निर्माण है।" महात्मा गांधी के सत्याग्रह सिद्धांत और भारतीय संविधान की प्रस्तावना उद्धरण 2: "जब हम अपनी स्वतंत्रता मनाते हैं, तो यह केवल अतीत की याद नहीं, बल्कि भविष्य के लिए आशा और एकजुटता का संकल्प है।" जवाहरलाल नेहरू का भाषण (14 अगस्त 1947) और राष्ट्रीय एकता के आदर्श


चिंतन के लिए सवाल


1. मरियम का स्वर्गारोहण आपको दैनिक कष्टों और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच अधिक आशा के साथ जीने के लिए किस प्रकार प्रेरित करता है?


2. भारत की स्वतंत्रता के मूल्य एकता, सहनशीलता, और स्वतंत्रता-समाज में "आशा के तीर्थयात्री" के रूप में आपकी भूमिका को कैसे कार्यान्वित कर सकते हैं?


3. न्याय, शांति और सुलह को बढ़ावा देने और आशा को फिर से जगाने के लिए आप व्यक्तिगत और सामुदायिक रूप से क्या कदम उठा सकते हैं?


रोज़ाना हिंदी ख़बरों और आध्यात्मिक लेखों के लिए कैथोलिक कनेक्ट ऐप डाउनलोड करें:


एंड्राइड के लिये यहाँ क्लिक करें

एप्पल के लिये यहाँ क्लिक करें


© 2025 CATHOLIC CONNECT POWERED BY ATCONLINE LLP