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छोटी राह, महान आशा: जुबली तीर्थयात्रियों के लिए प्रेरणा – संत थेरेस ऑफ़ लिज़ीयू

October 1, 2025:


संत थेरेस ऑफ़ लिज़ीयू, जिन्हें “छोटा फूल” कहा जाता है, ने अल्प किन्तु गहन जीवन जिया। उनकी सादगी, प्रेम और अटूट विश्वास आज भी लाखों को प्रेरित करते हैं। जुबली 2025 के “आशा के तीर्थयात्रियों” के लिए वे विश्वास, साहस और मिशनरी उमंग की प्रतिमूर्ति हैं।


प्रारम्भिक जीवन और बुलाहट

1873 में श्रद्धालु माता-पिता लुई और ज़ेली मार्टिन के घर जन्मी थेरेस बचपन से ही ईश्वर के प्रति संवेदनशील थीं। चार वर्ष की आयु में माता की मृत्यु ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने कार्मेलाइट कॉन्वेंट में प्रवेश कर अपना जीवन मसीह को समर्पित किया।


संघर्ष और धैर्य

क्लॉइस्टर के जीवन में उन्होंने आध्यात्मिक सूखेपन, संकोच और आत्म-संदेह का सामना किया। उनकी डायरी में यह पीड़ा ‘अंधकार की रात’ जैसी झलकती है। तपेदिक ने उनके शरीर को क्षीण कर दिया, किन्तु उन्होंने इसे आत्म-समर्पण और धैर्य से सहा। सहकर्मी सिस्टर्स द्वारा गलत समझे जाने पर भी वे विनम्रता और क्षमा की मूर्ति बनीं।


“छोटी राह” – प्रेम और विश्वास की आध्यात्मिकता

उनकी “छोटी राह” हमें सिखाती है कि महानता छोटे-छोटे कार्यों को महान प्रेम से करने में है। वे बालक जैसे विश्वास (मत्ती 18:3) पर बल देती थीं और मानती थीं कि पवित्रता वीरतापूर्ण कार्यों से नहीं, बल्कि साधारण जीवन की निष्ठा और प्रेम से प्राप्त होती है।


मिशनों की संरक्षिका

यद्यपि वे क्लॉइस्टर से बाहर कभी नहीं निकलीं, उनका हृदय सम्पूर्ण विश्व के उद्धार के लिए धड़कता रहा। उन्होंने कहा: “मेरा व्यवसाय है प्रेम!”। 1927 में पोप पायस ग्यारहवें ने उन्हें “मिशनों की संरक्षिका” घोषित किया।


जुबली 2025 के लिए प्रासंगिकता

जुबली 2025 विश्वासी जनों को “आशा के तीर्थयात्री” बनने का आमंत्रण देता है। संत थेरेस का जीवन इस यात्रा का आदर्श है—अंधकार से आशा की ओर, कष्टों से आनंद की ओर। उनका संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम ईश्वर की दया में अपनी आशा टिकाएँ और छोटे कार्यों से संसार को प्रकाशमान करें।


समकालीन महत्व और बाइबिलीय आधार


हेनरी नूवेन जैसे धर्मशास्त्रियों ने उनकी “छोटी राह” को आधुनिक चिंता और निराशा का उत्तर बताया। संत जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें स्त्रियों की अद्वितीय आध्यात्मिक देन का प्रतीक माना। उनका जीवन धन्य कथनों (मत्ती 5) का प्रतिरूप है। उनका विश्वास यीशु की पुकार “बालकों को मेरे पास आने दो” (मरकुस 10:14) को साकार करता है। पौलुस की शिक्षा—“जब मैं दुर्बल हूँ, तभी मैं बलवान हूँ” (2 कुरिन्थियों 12:10)—उनके जीवन में प्रत्यक्ष दिखती है।


संत थेरेस ऑफ़ लिज़ीयू जुबली 2025 में आशा की प्रतिमा के रूप में खड़ी हैं। वे हमें बुलाती हैं कि हम हृदय के तीर्थयात्री बनें, ईश्वर पर भरोसा रखें और प्रेम के छोटे-छोटे कार्यों द्वारा संसार को बदलें।


चिंतन हेतु प्रश्न

1. संत थेरेस की ‘छोटी राह’ को अपनाने से हमारे दैनिक संघर्ष किस प्रकार आध्यात्मिक विकास के अवसर में बदल सकते हैं?


2. उनका छिपा हुआ कष्ट किस प्रकार उद्धारकारी कष्ट के रहस्य और कलीसिया के सार्वभौमिक मिशन को प्रकट करता है?


3. आशा की वह यात्रा, जिसका आदर्श थेरेस ने दिया, जुबली वर्ष के दौरान हमारे विश्वास-जीवन में किस प्रकार नई प्रेरणा बन सकती है?



फादर वैलेरियन लोबो

जमशेदपुर डायोसीस

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